पथप्रदर्शन की कला
अट्ठारहवीं शताब्दी के दार्शनिक आर्थर सकोपेनहॉर ने एक बार कहा था: “सभी सत्यों को तीन अवस्थाओं से गुज़रना पड़ता है । पहले उसका उपहास होता है । दूसरा, हिसांत्मक ढंग से उसका विरोध होता है । तीसरा, उसे स्पष्ट रूप से स्वीकार कर लिया जाता है।”
AUDIO – The Art of Pioneering (Music by Deuter – Distant Dreams)
एक पथप्रदर्शक वह है जो जिसे जनता की मान्यताओं के अवरोध को तोड़ना पड़ता है, सम्भवत: आलोचना, उपहास या विरोध को निमंत्रण देना है । उन्हें स्वयं में और अपने कार्य में इतना विश्वास होता है कि उन्हें कुछ भी रोक नहीं सकता! अक्सर पुनरावलोकन में ही उनको पथप्रर्दशक के रूप में पहचाना जाता है, जब उनकी प्राप्तियों को पहचान लिया जाता है और मानवता के लिए एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में सराहना होती है । आख़िरकार वह स्वीकृत और प्रत्यक्ष सत्य बन जाता है ।
पैगम्बरों से लेकर गलियों के प्रदर्शनकारियों तक, हरेक वह मनुष्य जिसने संसार के लिए सकारात्मक परिवर्तन में योगदान दिया है उसे किसी न किसी रूप के विरोध को पराजित करना ही पड़ा है । उनकी विशुद्ध वचनबद्धता और दृढ़ता के कारण उन्होंने सभी मतभेदों पर विजय प्राप्त की । कभी कभी यश या सम्पत्ति प्राप्ति की मंशा होती है, लेकिन अक्सर एक पथप्रदर्शक एक महान, ऊँचे लक्ष्य से प्रेरित होता है जैसे मानवता के मूल्य, सच्चाई, स्वतंत्रता या बहुत से दूसरे योग्य आदर्श ।
पथप्रदर्शन करना कोई आसान कार्य नहीं है लेकिन पथप्रदर्शक बहुत अनिवार्य हैं । ये सूर्य चाहे लोकप्रियता में रहें या चुपचाप पीछे से अपना कार्य करें लेकिन इसके बावजूद वे किसी न किसी रूप में संसार को परिवर्तन करने में एक महत्वपूर्ण भुमिका निभा रहें हैं । वे वहाँ जाते है जहाँ कोई ‘मनुष्य’ अभी तक नहीं गया है, मार्ग खोलते हैं, पथ का निर्माण करते हैं ताकि औरों के लिए अनुसरण करना सहज हो जाए ।
पथप्रदर्शक शब्द ‘सर्वप्रर्थम’ का पर्यायवाची हो सकता है । हर पथप्रदर्शक को किसी भी क्षेत्र में अपरिचित मक़ाम से सबसे पहले गुज़रना पड़ता है । नयी भूमियों की खोज इसलिए हुई क्योंकि क्रिस्टोफर कोलम्बस और दूसरी साहसी आत्माऐं अपना आरामदायक क्षेत्र छोड़ कर अज्ञात स्थानों, प्रतिरोधी और खतरनाक पानी में आने के लिए तैयार हुए । छ: शताब्दी बाद स्टीव जोब्स ने हमारे जीने का, काम करने का और खेलने का ढंग बदल दिया क्योंकि उसे अपने आप पर, अपनी प्रतिभा पर और यथा स्थिति को परिवर्तन करने की अपनी क्षमता पर निश्चय था । सिगमंड फ्रॉड और कार्ल जंग ने, किस प्रकार हमारा मन और भावनाऐं काम करती हैं, इस बारे में हमारी सोच को क्रांतिकारी बना दिया और सामूहिक अचेतावस्था के सिद्धांत को प्रस्तावित किया जिससे हमें स्वयं के बारे में अलग और गहरी समझ मिली ।
कोई दार्शनिक, कोई राजनेता, कोई साहसी या कोई अज्ञात मनुष्य जो गली में आपके पास से गुज़रा है वह पथप्रदर्शक हो सकता है । बाहरी किरदार और रूप-रंग अप्रासंगिक हैं: एक पथप्रदर्शक को उसका चरित्र और अदम्य साहस परिभाषित करता है ।
पथप्रदर्शक संसार को सोच के दूसरे आयाम में ले जाता है और नई दिशाओं को खोल देता है । वे आंतिरक और बाहरी अज्ञात स्थानों की कहानियां और अनुभव हमारे मध्य दोबारा ले आते हैं । हम बैठ कर उनकी सराहना कर सकते हैं या हम उनकी राह पर चलकर स्वयं अनुभव कर सकते हैं ।
आज के पथप्रदर्शक वह हैं जो ना केवल मौजूदा सामाजिक कायदों को चुनौति दे रहें हैं बल्कि बड़ी संस्थाओं और सरकारों को भी चुनौति देने के लिए स्वयं को पर्याप्त शक्तिशाली अनुभव करते हैं: बहुत से तो न्याय, स्वतंत्रता और एक बेहतर संसार के लिए अपना जीवन भी दाँव पर लगाने के लिए तैयार हैं ।
महात्मा गांधी ने अहिंसात्मक विरोध का पथप्रदर्शन अपने सत्याग्रह के सदाचार से किया, जिसका अशुद्ध अनुवाद ‘सत्य पर अटल’ रूप में किया गया है । ब्रिटिश साम्राज्य की शक्ति के खिलाफ उनकी ‘लड़ाई’ केवल उनके मूल्यों के प्रति वचनबद्धता की शक्ति के आधार पर ही जीती गई ।
क्या पथप्रदर्शकता केवल चुने हुए कुछ लोगों के लिए है जो सामाजिक योग्यताओं से भरपूर हैं, संसार के आईंयटाईनों और मदर टेरेसाओं के लिए?
टाईम मैगज़ीन के अनुसार बीसवीं शताब्दी में सर अडमंड हिलेरी संसार के 100 सबसे अधिक प्रभावशाली व्यक्तियों की सूची में शामिल हो गऐ, 1953 में माउँट एवरेस्ट पर उनकी फतह, एक ऐसा साहसिक कार्य जिसने संसार भर के लाखों लोगों की कल्पना को भी जीत लिया ।
और हम में से कितने हैं जो प्रतिदिन चुनौतियों के पहाड़ों से मिलते हैं और उन पर जीत प्राप्त करते हैं । क्या हम हर कोई अपने यर्थात तरीके से पथप्रदर्शक नहीं बन सकते? हमारे परिवारों में, काम के स्थानों पर और संप्रदायों में? क्या हम शिक्षक, आदर्श नहीं बन सकते और वह करने का साहस नहीं रख सकते जो हमें करना चाहिए, जो हमारी समझ में सही है, बेशक वह काम करना आसान न भी हो?
राजयोग के अभ्यासी का लक्ष्य है कैसे हम सब अपनी बुराईयों पर विजय प्राप्त करके उदाहरण बनें ताकि हम नकारात्मकता से मुक्त जीवन व्यतीत कर सकें और स्वयं के और दूसरों के लिए शांति, खुशी और संतोषप्रद जीवन का निर्माण कर सकें ।
इस महीने हम मुख्य रूप से एक अज्ञात पथप्रदर्शक को श्रद्धांजलि देते हैं लेकिल जिसने सारे विश्व में लाखों नहीं तो हज़ारों के जीवन को परिवर्तन किया, जिन्हें दादा लेखराज के नाम से जाना जाता है जो कि बाद में ब्रहमा बाबा, ब्रहमाकुमारीज़ के संस्थापक, के नाम से पहचाने गए । 18 जनवरी 1969 को उन्होंने अपनी भौतिक देह का त्याग किया लेकिन प्रेरित करते रहते हैं और उनकी विरासत दिनों दिन बढ़ रही है ।
1930 के दौरान सभी विषम परिस्थितियों के होते हुए ब्रहमा बाबा ने एक नई जीवन शैली का पथप्रदर्शन किया । वे समाजिक कायदों के विरूद्ध गए । उन्होंने अपनी पहले वाली एक धनाढ्य हीरों के व्यापारी की गौरवान्वित जीवन शैली का त्याग कर दिया और अपनी जिम्मेवारियों का निर्वाह करते हुए जितना हो सके उतना साधारण रहने लगे । उन्होंने महिलाओं के हितों की रक्षा की, उनको आघ्यात्मिक नेता बनाया और आध्यात्मिक विश्वविद्यालय का ट्रस्टी बनाया – एक समाज जहाँ महिलाओं को अधीन और द्वितीय श्रेणी की नागरिक समझा जाता था वहाँ यह कार्य बहुत कारंतिकारी था । ब्रहमा बाबा ने प्रत्येक मानव को प्रेम और आदर की समान दृष्टि से देखा, चाहे जीवन में उनका स्थान कितना ही ऊँच या नीच क्यों न हो । उस समय के कायदों और कानून को चुनौति देने के कारण उन्हें हिंसात्मक विरोध का सामना करना पड़ा और जीवन के लिए बहुत धमकियां मिली । उन्होंने मार्ग दर्शकों का निर्माण किया अनुयायीयों का नहीं, और शांति और सच्चाई के मार्ग का समर्थन किया और विश्व भाईचारे का स्वपन देखा जिसका हम सभी अनुसरण कर सकते हैं ।
विडम्बना यह है कि ब्रहमा बाबा ने स्वयं को कभी पथपदर्शक नहीं माना । उन्होंने स्वयं को परमात्मा के द्वारा निमित्त माना, आध्यात्मिक ऊर्जा को फिर से संसार में लाने के लिए एक वाहन ।
उन्होंने बेशर्त प्रेम और मन से निस्वार्थ सेवा करने में उदाहरण प्रस्तुत किया… शुभ कामनाओं और शुभ भावनाओं के प्रकम्पन्न संसार में फैलाए जिसने लोगों के दिलों को छु लिया । जो बीज उन्होंने बोए उससे आध्यात्मिकता के मार्ग पर लाखों लोगों को प्रेरणा मिल रही है ।
अब समय है… पथपदर्शक के भाव को जागृत करने का और यह जानने का कि हम सबके पास संसार को अर्पण करने के लिए कुछ कीमती है । यह अहसास करने का कि अच्छे के लिए हर कर्म और विचार ब्रहमांड में लहरें उत्पन्न करता है और लाखों को प्रभावित और प्रेरित कर सकता है । इसलिए चाहे कोई आपका उपहास करे या विरोध करे – एक दिन सत्य स्वयं को सिद्ध कर देगा!
© ‘It’s Time…’ by Aruna Ladva, BK Publications London, UK