दादा बनाम गूगल
हमने सोचा था कि हमें अपने भविष्य की चिंता करनी पड़ेगी और निरंतर बदलते हुए संसार के अनुरूप ढ़लना पड़ेगा । मगर ऐसा लगता है कि हमें अपनी भविष्य की पीढ़ी के लिए अधिक चिंतित होना चाहिए था ।
ऐसा लगता है कि वर्ल्ड वाईड वैब (इन्टरनेट) ने अपना जाल कुछ इस कदर बिछाया है कि हम इसे अनदेखा नहीं कर सकते । इन्टरनेट प्रत्येक स्थान पर व्यापक है जिस पर हम निर्भर हो गए हैं ।
पालने से कब्र तक जीवन का प्रत्येक पहलू को जीने के बारे में हमें जितनी जानकारी होनी चाहिए उससे कहीं अधिक हमारी ऊँगलियों पर है । ऐसा लगता है हमारे अधिकतर संवाद साईबरस्पेस में होते हैं, और हम जाने अनजाने आसानी से ऐसा जीवन जीने लगते है जो वास्तविकता से परे है । जवान पीढ़ीयों के मानव सम्बन्धों पर इसका क्या असर पड़ेगा, जिन्होने शायद अपने अधिकतर वार्तालाप एक लोहे के यंत्र के माध्यम से ही किये हैं और इसके अलावा कोई दूसरा अनुभव नहीं है?
अधिकतर बच्चों के हाथ में फोन या टेबलेट है । आसानी से प्रयोग कर पाने का आकर्षण, हर बात का सम्भव लगना, एक बटन को दबाने से या ऊँगली को थोड़ा हिलाने से हर कोई सुपरहीरो या कलाकार बन सकता है, इन बातों ने हमें प्रलोभन देकर इस बात का झांसा दिया है कि हम बहुत शक्तिशाली हैं ।
हाल ही में एक मित्र बता रहे थे कि जब वे परिवार के साथ छुट्टियों पर थे तो उनके बच्चे सुबह 4 बजे का अलार्म लगाते थे ताकि उनके माँ-बाप के उठने से पहले वे उठ सकें और इन्टरनेट पर गेम खेल सकें और कोई उन्हें रोक न सके! अब बच्चों को सुबह 4 बजे उठने के लिए और क्या बात उकसा सकती है?
इन दिनों बच्चे अपने अभिभावकों को दरकिनार कर, जीवन के बारे में जो कुछ भी उन्हें जानना होता है वे इन्टरनेट से जानकारी हासिल कर लेते हैं । यौवन, संभोग, ड्रग्स, शादी, तलाक, बस आप नाम लें; सब हाज़िर है ।
यह सत्य है कि सात साल के बच्चों ने भी ऑनलाईन सुअवसरों में निपुणता हासिल कर ली है और करोड़पति बन गये हैं । इस उम्र में कोई कितना नाम, मान और धन को सम्भाल सकेगा?
यह भी सम्भव है कि नई पीढ़ी गिरीजाघरों, मंदिरों या मस्ज़िदों को भूल जाऐ और सुबह उठकर भगवान गूगल से बात करे ।
वे अपने सवाल रखेंगे और कुछ ही पलों में उत्तर हासिल कर लेंगे । पुरानी पीढ़ीयों को खोजना पड़ता था, कड़ी मेहनत और तपस्या करनी पड़ती थी! हम में विश्वास, धैर्य और सहनशक्ति थी । उस प्रक्रिया में हमने सीखा, हम बड़े हुए, हम साधन-सम्पन्न बने, हमने आपस में बातचीत की और हमने ज्ञान और विवेक के अर्थ को समझा ।
इन दिनों हमारे बच्चे इतने अद्यतन जानकारीयुक्त हैं कि वे अपने अभिभावकों को अनभिज्ञ और अनजान समझते हैं । इसका परिणाम अपने बड़ों के प्रति आदर कम हो जाता है जिनको भूतकाल में हम उनके अनुभवों और विवेकी सलाह के कारण श्रद्धेय मानते थे । बच्चों के अपने मातपिता के करीब आने का कोई बेहतर कारण होना चाहिए; बच्चों को ऐसा कुछ दें जो इन्टरनेट की दुनिया न दे पाऐ ।
हमने इन्टरनेट के माध्यम से बाहर के अति विशाल संसार से तो जुड़ गऐ लेकिन हमारे भीतर के संसार में मानव अहसास का अभाव है । आत्मा से आत्मा का जुड़ाव कम हो रहा है । हमारे विश्वसनीय कम्पयूटर,लैपटोप, टैबलेट, पैडस और फोन हमें तथ्य और जानकारी दे सकते हैं लेकिन वे हमें सही मायनों में शांति, प्रेम और सच्चाई का अनुभव नहीं करा सकते । ये हमें आदर करना, सत्कार या सराहना नहीं सीखा सकते । ये हमें अच्छी आदतें और विवेक नहीं सीखा सकते । उसके लिए हमें मानव सम्बन्धों में निवेश करना होगा ।
इन्टरनेट बहुत महान खोज है और इस सन्देश को सब तक पहुँचाने के लिए मैं भी इसका लाभ ले रही हूँ । फिर भी वयस्क होने के नाते हमें इसके अविवेकी प्रयोग पर रोक लगानी चाहिए । मुझे नहीं लगता कि नियंत्रण करने का प्रश्न है लेकिन हमें इसके प्रयोग का सही प्रबंधन करना होगा और इससे बाल मनों पर इसका गम्भीर परिणाम भी कम हो जाऐगा ।
अगर परिवार कुछ और अधिक समय साथ में बिताऐं, कुछ वास्तविक संवाद करें और एक दूसरे के लिए विशुद्ध चिंता ज़ाहिर करें तो प्रेम और आदर पनपेगा । इससे परिवार बहुत स्वस्थ होंगे और सम्बन्ध बहुत मज़बूत ।
ये अभ्यास लाभदायी होंगे:
- भोजन के दौरान कोई फोन या दूसरे यंत्र निषेध कर दें
- दिन के कुछ घंटे वाईफाई बंद कर दें
- अपने परिवार के साथ रूबरू बैठकर बातों पर विचार करें
- वैबसाईटों को सुरक्षित करें और प्रबंधन करें
अब समय है… इन्टरनेट को आपसी सम्बन्धों से बदलने का । परिवार के लिए अधिक समय निकालें और अपने बच्चों में निवेश करें, ताकि अगली बार इन्टरनेट की ओर दौड़ने के स्थान पर वे ध्यान, प्रेम और मार्गदर्शन के लिए आपके पास आऐं!
Listen to the audio in English (Music by Chris Spheeris)
© ‘It’s Time…’ by Aruna Ladva, BK Publications London, UK