घर में सन्यासी

शायद आपके लिए त्याग शब्द से, सभी सांसारिक वस्तुओं को छोड़ देने का, गेरूए वस्त्रों में पहाड़ की चोटी पर बैठे हुए और जंगल में निवास करने का चित्र सामने आता होगा । थोड़ा दोबारा सोचें, आधुनिक संसार में इस शब्द का बिल्कुल अलग अर्थ है ।
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भूतकाल में जिसे त्याग कहा जाता था, आधुनिक जगत में उसे अल्पतमता कहा जाता है! किसी समय त्याग का अर्थ आवश्यक कर्तव्य के रूप में लिया जाता था, जबकि आधुनिकवादी अलपतमता को अपने ही अनुसार समझ रहे हैं । लोग अपने आप ही यह समझ रहे हैं कि मुसीबत के समय के लिए या पर्याप्त उपलब्ध न होने के डर से आवश्यकता से अधिक वस्तुऐं एकत्र कर लेने से कोई लाभ नहीं है । अलपतमवादी, भौतिक और मानसिक रिक्त स्थान उत्पन्न करने और एक प्रकार की मुक्ति का अनुभव करने के लिए अपनी अलमारियों से, रसोईघरों से और गैरजों से वस्तुओं को निकाल रहे हैं ।
इसे ‘घर में सन्यासी’ भी कहा जा सकता है । दूसरे शब्दों में पहाड़ों पर जाने की आवश्यकता नहीं है । हम अपने घर में ही रह कर, बहुत सी उन बातों से जो वास्तव में हमारा बहुत समय और ध्यान नष्ट करती हैं, उनसे मुक्त हो सकते हैं । वे ‘वस्तुऐं’ हमारे बैंक के अतिरिक्त खाते हो सकते हैं या भूमि या वैभव हो सकते हैं । हमारे कुछ सम्बन्ध हो सकते हैं जो हमारी ऊर्जा को खींच लेते हैं और हमें नकारात्मक और आक्रामक महसूस करा देते हैं । आवश्यकता से अधिक मशीन, यंत्र जिन्हें सीखने में समय लगता है, फिर बाद में उनको सम्भालने में और मरम्मत कराने में समय लगता है । ये बातें ग्रूप चैट और हर प्रकार की सदस्यता भी हो सकती है जो हर छोटे प्रतिफल पर हमारा ध्यान खींचती हैं ।

हम इसे कोई भी नाम दे दें, चाहे त्याग या अल्पतमता, अभिप्राय समान है । दोनों ही का तात्पर्य है कि हम सादगी से बहुत कम वस्तुओं के साथ जीवन बिता सकते हैं जिन्हें कम ध्यान देने की और कम मरम्मत की आवश्यकता होगी । ऐसा करने से हमें गहरी शांति, संतुष्टता और आनंद का अनुभव होगा । इसके अतिरिक्त, ऐसा करने से हमें कुछ छोड़ने की महसूसता नहीं होगी बल्कि इससे बहुत हल्कापन आता है और कुछ गहरा और अर्थपूर्ण पाने का अहसास होता है । इससे जीवन की महत्वपूर्ण वस्तुओं की प्रतिष्ठा बढ़ जाती है ।
राजयोग के पथ पर हमें नकारात्मकता, जो बुराईयां हमें निरंतर तंग करती हैं और हमें दुख देती हैं उन्हें छोड़ने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है । कोई समझदार कहेगा, कि जो कुछ भी आपको दुख देता है उसे छोड़ना स्वाभाविक है! लेकिन बिल्कुल यही अर्थ है । पहले हमें इस बात का अहसास होना चाहिए कि वास्तव में जितनी भी वस्तुओं को हमने पकड़ कर रखा है वे हमें दुख ही दे रही हैं । शायद अस्थायी खुशी, परन्तु आखिरकार वे हमारी आत्मा पर एक बोझ हैं ।

हमें अपने मोह और इच्छाओं को भी छोड़ने के लिए उत्साहित किया जाता है, यह आवश्यक नहीं है कि वस्तुऐं ही छोड़ी जाऐं (लेकिन निसस्देह इससे व्सवस्थित रखने में मदद मिलती है!) बेशक बैंक में हमारे पास बहुत पैसे हों, लेकिन जब हमारा मोह हमारी दौलत में होता है तो हम उसके आधार पर अपनी एक छवि निर्माण कर लेते हैं और फिर माया के चंगुल में फंस कर धोखा खा लेते हैं ।
किसी फलैट या घर में यह बहुत प्रत्यक्ष हो जाता है कि अगर आप किसी फर्नीचर जैसे बिस्तर या सोफा किसी स्थान पर रखते हैं तो दूसरी वस्तु उस स्थान पर अच्छी तरह नहीं आ सकती । इसी प्रकार, जब मैं चिंताओं, परेशानीओं और बहुत से विचारों को अपने मन में रख लेती हूँ तो दूसरी आवश्यक, कीमती या अधिक आनंद प्रदान करने वाली बातों के लिए स्थान नहीं बचेगा । कभी तो मुझे उन्हें त्याग कर कुछ नए के प्रवेश हेतू स्थान बनाना पड़ेगा ।

त्याग करने वाले ने अपनी यात्रा में बहुत सी बातों को महसूस किया है । ऐसा नहीं है कि उसका कोई लक्ष्य नही है । असल में, वे पूरी तरह क्रियाशील रहते हैं, लेकिन बाहरी वस्तुओं के उपार्जन के आधार पर नहीं बल्कि अपने आंतरिक जगत के आधार पर । त्यागी जानता है कि उसे अपनी आत्मा के खाते में जमा करना है, उसे गुण, शक्तियां, अच्छे अनुभव और आत्मा की यात्रा की यादें जमा करनी हैं और इसलिए ही वह अधिक ध्यान इस ओर लगाता है ।
अब समय है… प्रेम और बुद्धिमत्ता से, जिसकी आपको आवश्यकता नहीं है उसे जाने देने का, और आप देखेंगे कि आप कितना हल्का महसूस करते हैं ।
© ‘It’s Time…’ by Aruna Ladva, BK Publications London, UK