संस्कृतियों को समझना – Understanding Cultures (in Hindi)

संस्कृतियों को समझना

एक कहानी इस प्रकार है कि एक छोटी लड़की के पास दो सेब थे, दोनों हाथों में एक एक । उसने अपनी माँ को एक सेब भेंट किया । उसकी माँ ने कहा: “क्यों नहीं!” फिर छोटी लड़की जाकर दोनों सेबों को दाँत से काटने लगी । माँ को अचम्भा हुआ और थोड़ी नाराज़ भी हो गई कि उसकी बेटी नासमझ है जो ऐसा कर रही है । माँ के चेहरे पर आश्चर्य का भाव देखकर लड़की ने जवाब दिया: “मम्मी, मैं देख रही थी कि कौन सा सेब अधिक मीठा है ताकि मैं आपको वही दे सकूँ!”

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दूसरों के बारे में धारणा बना लेना और अपमानित महसूस करने के बदले एक दूसरे को समझना बहुत महत्वपूर्ण है । कितनी बार हम बहुत जगह जाते हैं और बहुत सी बातें अपमानजनक लगती हैं, जबकि असल में हो सकता है दूसरी पार्टी बहुत अधिक विनम्र बनने का प्रयास कर रही हो! अगर हम स्वयं को ऐसी परिस्थिति में पाते हैं जहाँ आप दूसरी संस्कृति के व्यक्ति के साथ हैं तो सोचने के लिए थोड़ा रूकिए कि उनका इरादा कुछ और होगा जो हम समझ नहीं पा रहे हैं । इससे आप बहुत दुख से स्वयं को बचा सकेंगे!

एक लड़की ने बताया कि एक देश में एक सज्जन, जो उसके साथ एक स्थान पर जा रहे थे, ने दरवाज़ा खोला और उससे पहले उसमें प्रवेश किया । वह बहुत अपमानित हो गई । “पहले महिलाऐं नहीं?” वह बहुत हाँफने लगी! असल में यह ऐशियाई लड़का सोच रहा था कि पहले प्रवेश करके वह विनम्र बन रहा है क्योंकि उसने पहले प्रवेश इसलिए किया ताकि वह उस लड़की के लिए दरवाज़ा पकड़ कर रखे ताकि वह अपनी सुविधानुसार प्रवेश कर सके ।

उदाहरण के लिए कोरीया में, विशेषकर अंतरंग सभाओं में पैर की ऊँगली का दिखाना जैसे वक्षरेखा का दिखाना है! इसे बिल्कुल भी विनम्र नहीं माना जाता । तो अगर आप वहाँ जाते हो तो निश्चित करें कि आपने जुराब पहनी हैं!

एशियाई देशों में जब हम कोई भी वस्तु केवल एक हाथ से देते हैं, तो वे शायद हम विदेशियों को बहुत असभ्य समझेंगे । वहाँ हर चीज़, रसीद भी दोनों हाथों से देने की प्रथा है, चाहे एक हाथ से दूसरे हाथ की बाँह पकड़कर दें । यह आदर और शिष्टाचार की निशानी है ।

यहाँ एक दूसरा उदाहरण है! किसी संस्कृति में अपने सूप को आवाज़ करके पीना बावर्ची को ये संदेश देना है कि आपको सूप बहुत पसंद आया है! जबकि दूसरे देशों में इस को असभ्य और टेबल की खराब आदतें मानी जाएगी!

कुछ संस्कृतियों में आपको ‘ना’ कहना पसंद नहीं किया जाता, और बदले में कहते हैं ‘इंशाअल्लाह’ (भगवान की मर्ज़ी), या फिर दूसरे हर बात में हाँ कहते हैं क्योंकि ना कहना बहुत असभ्य माना जाता है । दूसरी संस्कृतियों में किसी को जानना है कि… हाँ है या ना है? वे यर्थातत: जानना चाहते हैं ताकि उस अनुसार वे प्रतिक्रिया दे सकें ।

तो मैं सोचती हूँ बात समझ आ गई है! अशुद्ध अर्थ निकालना, गलत समझना और अंदाज़ा लगाना बहुत आसान है ।

यह सोचना भी बहुत अभिमानी बनना होगा कि हमेशा हम ही ठीक हैं । हम अपने देश में ‘राजनितिक रीति’ से सही होंगे, लेकिन कहीं और जाकर देखिए दूसरी ही कहानी मिलेगी ।

हर बात के एक से अधिक पहलू होते हैं । लेकिन अगर हमने आँख पर पट्टी बाँधी है तो हम उसे कभी नहीं देख पाऐंगे ।

दिल खोल दें, मन को स्वतंत्र कर दें, दूसरी संस्कृतियों और उनके तरीकों के बारे में सीखने के लिए खुला हृदय रखें… यह हमें नम्र बनाता है और साथ ही साथ हमारे दिल को छूता है ।

और हाँ, अगली बार कोई भारतीय अपना सिर दायें से बायें हिलाता है तो असल में उसका अर्थ हाँ होता है!!

अब समय है… पूर्वाग्रहों को एक तरफ करने का और असमानताओं को स्वीकार करने का । और यह निश्चित करें कि सही स्थान पर आपने सही कपड़े पहने हैं!

 

© ‘It’s Time…’ by Aruna Ladva, BK Publications London, UK

 

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